Wednesday, 1 June 2011

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Thursday, 26 May 2011

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Sunday, 10 April 2011

बहादुर कलावती कलारिन की शौर्यगाथा

कलार समाज का पौराणिक इतिहास है. समाज के लोग देवाधिदेव भगवान शंकर को अपना इष्टदेव मानते है. समाज के लगभग सभी घरो में महादेव की स्थापना होती है. समाज की बातों को दम शिव पुराण से भी मिलता है. सती की कहानी में कला से वार का प्रसंग आया है. कला से वार करने वाले सैनिक आगे चलकर कलवार से संबोधित किये जाने लगे और कलवार का अपभ्रंश कलार बताया जाता है. कलार इसी तथ्य के आधार पर समाज को महादेव का वंशज मानते है. समाज के इक और इतिहास में भगवान सहस्त्रबाहु का उल्लेख है. बताया जाता है की महर्षि जमदग्नि और महिष्मति का राजा सहस्त्रबाहु अपने पराक्रम के कारण जग प्रशिद्ध थे. कलार समाज सहस्त्रबाहु के अनुयायी है. समाज का सम्बन्ध कलचुरी; हैहैवंशी और  जैन कलवार से भी संबध है. हम यहाँ पर इन सबके बहुत बाद की प्रमाणिक घटना पर चर्चा कर रहे है. बहादुर कलारिन की  से  समाज को एक नई दिशा मिली है.नीरज गजेन्द्र
नारी जीवन के प्रमुख चरणों में पुत्री; भगनी; पत्नी; माता के रूप में पूर्ण स्नेह; निष्ठा; समर्पण; प्रेम; विश्वास; ममता; वात्सल्य देकर आत्मोसर्ग के द्वारा अमिट छाप छोड़ते हुए स्वर्णिम इतिहास रचा है. ममत्व प्रेम की धारा है . माँ अपनी संतान के लिए अपने प्राण त्याग देती है . इस तरह की घटनाओ की जानकारी से पूरा इतिहास पड़ा हुआ है. लेकिन कलावती का बहादुर कलारिन बनना इतिहास का इकलौता अध्याय है. ६ वी शताब्दी के कलचुरी कालीन इतिहास में बहादुर कलारिन की शौर्य गाथा कलार स
माज को गौरान्वित करता है. बहादुर कलारिन की शौर्यगाथा के साथ समाज को कलावती के सौन्दर्य; गुण; वीरता; साहस; धैर्य; नारी सम्मान का सन्देश विकास की ओर अग्रसर करता है. समाज ने डडसेना सन्देश में कलावती को समाज की अधिष्ठात्री कुलदेवी से अलंकृत किया है.  समाज ने अपने समर्पण में कहा है........
श्रद्धा सुमन बहादुर कलारिन को; जिसने जीवन भर किया संघर्ष . दुखों को जिया; दिया औरों को हर्ष. आत्मोत्सर्ग कर बना दी पहिचान अपनी; इतिहास को दिया अस्तित्व का बोध; माता बहादुर कलारिन के शौर्य को कभी नहीं भूलेगा कलारो का जोश.
  

कलचुरी साम्राज्य का बिखराव हो गया था. पूरा साम्राज्य छोटे-छोटे राज्यों; जमीदारी; मालगुजारी में बंट गया था. छत्तीसगढ़ के वनांचल में ग्राम सरहरगढ़ था. पूरा गाँव पशु-पक्छियो की मौजूदगी से आच्दित जंगल से घिरा हुआ था.  राजाओ के वंसज आखेट के लिए यहाँ आते थे. गांव में कलारो के अलावा तेली; मरार; रावत; ठाकुर; लोहार; धोबी और नाई जाति के परिवार रहते थे. गांव में कलारो की अधिक जनसँख्या थी. गांव के पूर्वी इलाके में पत्थरो का पहाढ़ था. चट्टनो के इसी टीले से कुछ दुरी पर गौटिया सुबेलाल कलार का मकान था.  घर के बहार एक परछी था और वही सुबेलाल कलार अपनी मदिरा की दुकान लगाता था. सुबेलाल के बनाये शराब की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी; इसलिए सूबे की शराब पीने शाम को वहां भीड़ हो जाति थी. सुबेलाल के परिवार में उसके स्वर्गवासी छोटे भाई की बेटी कलावती के आलावा कोई और नहीं था. कलावती अभी ६ साल की थी. सुबेलाल ही कलावती का माँ और बाप था. शाम को मदिरा दुकान में मदिराप्रेमियों की भीड़ अधिक होने पर कलावती बड़े पिताजी की मदद किया करती थी.

मोहनी अवतार सी थी  कलावती : 
बड़े पिताजी की मदद के लिए मदिरालय में बैठी कलावती के रूप सौंदर्य को देखकर लोग भगवान विष्णु के मोहनीरूप की कल्पनालोक में चले जाते थे. लोग कहते की कलावती की सभी कलाओ को ब्रह्माजी जी ने बड़ी ही कलात्मकता के साथ तराशा है. बेटी के रूप माधुर्य को सुनकर सुबेलाल गौरान्वित तो होता ही था; लेकिन बेटी की बढती आयु उसे चिंतित कर देती थी. सुबेलाल को चिंता यह भी थी की कलावती का उसके बाद कौन है और उसके लिए कलावती के आलावा कौन है. कलावती को सौन्दर्य के आलावा वह शौर्य कला में भी पारंगत करना चाहता था; इस उदेश्य की पूर्ति के लिए सुबेलाल ने कलावती को खेल-खिलौनों से दूर रखते हुए लाठी; कटार और तलवार चलाना सिखाने लगा. समय बदलते देर नहीं लगी ६ साल की कलावती देखते ही देखते १६ साल की नव यौवन हो गई. कलावती का यौवन अद्वितीय था. वह जब चलती थी तो उसकी चाल गजगामिनी से भी अच्छी लगती थी. नागिन जैसे बाल थे. वह जब हँसती थी तो लगता था फूल बरस रहे हों; बोलती थी तो ममत्व का वात्सल्य झलकता था; आँखे मृगनयनी के सामान थे; क्रोध में चेहरा चंडी के सामान हो जाता था. रूपगर्विता कलावती के यौवन की एक झलक पाने के लिए कई राजा और राजकुमार वेश बदलकर शराब खरीदने सुबेलाल की दुकान में आते थे; लेकिन कलावती के पराक्रम को देख सुनकर खामोश लौट जाते थे.

जिम्मेदारियों में कलावती की जीत : 
गौटिया सुबेलाल कलार बूढ़ा हो गया था. मदिरा दुकान का संचालन अब कलावती ही कर रही थी. गाँव से हट कर पथरीले चट्टान की ओर पत्थर की माची बनाकर कलावती मदिरा आसवन का काम करती थी. मदिरा व्यवसाय के साथ - साथ कलावती ने इत्र और औषधि का अर्क तैयार करने का काम करती थी. इस कारोबार में कलावती ने अपार धन संपदा भी एकत्र की थी. कमर में कटार बांधकर सोने की बैठकी में कलावती महारानी के सामान ही दिखती थी. कलावती के पास शराब खरीदने के लिए दूर-दूर से कलार व्यापारी आते थे. कलावती के शांत और सादगीपूर्ण व्यव्हार के आगे सभी नतमस्तक थे. कभी कभार मनचलों का सामना भी कलावती से होता था; लेकिन मनचलों को मुंह की खानी पड़ती थी और वे शर्मसार होकर भाग खड़े होते थे. कलावती के इस पराक्रम ने उसे बहादुर कलारिन बना दिया. 

जय माता दी
सार्थक सन्देश के इस ब्लॉग में सभी का मै नीरज गजेन्द्र स्वागत करता हूँ.